Thursday, August 8, 2013

Bhagwat Gita - a Divine story of Mental Conflict & Emotional Catharsis - My First attempt to describe it in Hindi - Dedicated to my Guru Swami Yogi Anand Ji.

Sh. Guruve Namaha, Om Namo Bhagvate Vasudevaye Namaha!


भगवान के मुख से गाया हुआ अद्भुत अनूठा ,अतुलनीय ग्रन्थ है भगवत गीता ज़ैसा कि हम बरसों से सुनते आयें हैं ,भगवत गीता अधर्म पर धर्म की जीत की गाथा है ,बुराई पर अच्छाई की विजय की कहानी है।अनैतिकता पर नैतिकता और कुनीति पर नीति की पराकाष्ठा का वर्रण है। लेकिन अगर गहराई में उतर कर देखें तो व्यक्तिगत स्तर पर भगवत गीता का यह ज्ञान स्वयं पर स्वयं की ही जीत की भी व्याख्या है। इन्द्रियों पर मन ,मन पर बुद्धि और बुद्धि पर आत्मा की विजय का शंखनाद है। हम सभी के अन्दर चल रहे वैचारिक अंतर्द्वंद्व और समाज द्वारा बोई गई धारणाओं के मायाजाल और चक्रव्यूह में घिरने की कहानी भी है भगवत गीता।

हम सभी आज किसी न किसी रूप में किमकर्तव्यविमूढ अर्जुन के समान हैं जो सही -गलत ,धर्म -अधर्म ,व्यवहार कुशलता और कर्तव्य एवं अधिकारों की भीड़ में पूरी तरह से दिशा भ्रमित हैं। रोज़ ,दिन की सुबह के साथ हम एक नए कुरुक्षेत्र में प्रवेश करते हैं और दिन के ढलते ढलते या तो विजयी या परास्त होकर घर को लौट आते हैं। यहाँ गौर देने वाली बात यह है कि 'विजयी 'और 'परास्त 'होने की परिभाषा भी हमने खुद ही निर्धारित कर ली है अपने अपने परिवेश और अनुकूलता अनुसार।

सही -गलत,नैतिक अ -नैतिक का निर्णय भी केवल इन्द्रियों और मन के सुपुर्द है। जो इन्द्रियों को लुभाए वही सही ,और जो मन को प्रसन्न करे वही श्रेष्ठ। बुद्धि के इस्तेमाल की तो अक्सर नौबत ही नहीं आती ,बुद्धि भी पूर्ण भ्रमित अवस्था में कहीं अन्धकार में गहरी नींद सो रही है। ऐसे में आत्मा के अस्तित्व को तो भूल ही जाओ।बहुतों को तो उसके होने पर भी संदेह है।

यह गीता का ज्ञान यूं तो हमें अपनी संस्कृति से विरासत में मिला था लेकिन बिना परिश्रम किये यूं ही मुफ्त में मिल जाने वाली किसी भी वस्तु की तरह हमने इसके महत्व और प्रतिष्ठा को समझना या सहेज कर रखना ज़रूरी नहीं समझा। अब जब कलियुग के गहरे अन्धकार में खुद को भी देख पाना मुश्किल हो रहा है और हमारी सांस्कृतिक धरोहर धूल में लिप्त हो चुकी है ,अपने ही रचे मायाजाल में हम दुखी भ्रमित ,उदासीन और बीमार रहने लगे हैं। नितांत आवश्यकता है उसी ज्ञान के स्रोत का उस प्रकाश का जिसे देखने पर अर्जुन जैसे कुशल योद्धा की दिशा भ्रमित बुद्धि भी जाग उठी थी। ऐसे में हमें भी ज़रुरत है एक ऐसे सारथी की जो मुश्किल की घडी में ,विषमताओं से घिरे हम आम लोगों का अपने शील ,धैर्य , ज्ञान और बुद्धिमत्ता के बल से मार्ग दर्शन करे ,सत्य का साथ देने की प्रेरणा दे ,सामाजिक विषय -विकारों से मुक्ति दिलाये और भ्रम से ब्रह्म की और ले चले। और ऐसा सारथी एक गुरु से बेहतर कोई नहीं हो सकता। ऐसा साध्य भगवान से बढ़कर कोई नहीं।

गुरु के सानिध्य और भगवान द्वारा दिए गए सामर्थ्य का भी अद्भुत वर्रण है भगवत गीता। भाग्यशाली हैं वह लोग जो भगवान के विस्तारित ज्ञान को समय रहते जानकर सीख कर ,महसूस करके अपने जीवन की गति और गंतव्य दोनों को बदल सकते हैं।

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